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बकरी पालन से कम खर्च में पाएं अधिक मुनाफा, छोटे व सीमांत किसानों के लिए है यह अतिरिक्त कमाई का जरिया

बकरी पालन से कम खर्च में पाएं अधिक मुनाफा, छोटे व सीमांत किसानों के लिए है यह अतिरिक्त कमाई का जरिया

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बकरी पालन के प्रति बढ़ती दिलचस्पी का प्रमुख कारण कम खर्च में अधिक मुनाफा है. बकरी एक बहुपयोगी पशु है. ये देश में भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों को भरण पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इसी वजह से बकरी को गरीबों का गाय कहा जाता है.

देश के छोटे और सीमांत किसान अतिरिक्त आय के लिए पशुपालन का सहारा लेते हैं. मुर्गी पालन के अलावा बकरी पालन का काम सदियों से चलता आ रहा है. बकरी पालन के साथ सबसे अच्छी बात है कि इसे कम स्थान और कम खर्च में किया जा सकता है. इसी कारण किसान आसानी से बकरी पालन कर लेते हैं और उन्हें कोई परेशानी नहीं होती. कम देखभाल के बाद किसान बकरी पालन से अच्छा मुनाफा हासिल करते हैं. यहीं वजह है कि बीते पांच साल में बकरियों की संख्या में इजाफा देखने को मिला है.

हर पांच साल पर होने वाली पशुगणना के मुताबिक, 2012 की तुलना में पशुधन में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2012 में पशुधन की आबादी 51.20 करोड़ थी जो 2019 में आए आंकड़ों में बढ़कर 53 करोड़ 57 लाख 80 हजार हो गई. कुल पशुधन में बकरियों की हिस्सेदारी 27 फीसदी है. मतलब बकरियों की संख्या में 10 प्रतिशत का इजाफा होकर 14.9 प्रतिशत हो गया है. इन आंकड़ों से साफ पता चल रहा है कि पशुपालक बकरी पालन की तरफ रुख कर रहे हैं.

गरीबों की गाय है बकरी

बकरी पालन के प्रति बढ़ती दिलचस्पी का प्रमुख कारण कम खर्च में अधिक मुनाफा है. बकरी एक बहुपयोगी पशु है. ये देश में भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों को भरण पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इसी वजह से बकरी को गरीबों का गाय कहा जाता है.

बकरियां कम उपजाऊ मिट्टी में उगने वाली झाड़ियों और पेड़ों की पत्तियां खाकर हर तरह के प्रतिकूल वातावरण में भी जीवित रह सकती हैं. बकरी पालन व्यवसाय में शुरुआती लागत कम होती है. शरीर का आकार छोटा होने के कारण बकरी पालन में आवास और प्रबंधन पर कम खर्च करना पड़ता है.

आम तौर पर एक बकरी 10 से 12 महीने में गर्भधारण करने लायक हो जाती है. 16 से 17 महीने की आयु में पहली बार मेमन दे देती है. बकरी के मांस में कम कोलेस्ट्रॉल होने के कारण काफी पसंद किया जाता है. वहीं इसका दूध गाय की दूध की तुलना में आसानी से पचाया जा सकता है.

बकरी पालन में खर्च कम और मुनाफा ज्यादा

पशु पालकों को उत्पादन लक्ष्य और क्षेत्र के हिसाब से बकरी के नस्ल का चयन करना चाहिए. जमुनापारी, सिरोही, बरबरी और जखराना नस्ल की बकरियां मैदानी क्षेत्र के लिए उपयोगी मानी जाती हैं. ब्लैक बंगाल और गजम नस्क की बकरी को मांस के लिए पाला जाता है. नस्ल के साथ-साथ इनके आवास और आहार का भी खास ध्यान रखना होता है.

एक बकरी को मोटे तौर पर एक वर्ग मीटर क्षेत्रफल की जरूरत होती है. इसी आधार पर आप बकरियों के लिए आवास तैयार कर सकते हैं. अगर बकरियों के लिए आहार की बात करें तो किसी भी दूसरे पशु की तुलना में कम खर्च करना पड़ता है. आम तौर पर एक बकरी को दो किलो चारा और आधा किलो दाना देना ठीक रहता है.

सबसे खास बात है कि बकरी पालन के लिए सरकार की ओर से भी मदद मिलती है. इसके लिए केंद्र और राज्यों सरकारों की तरफ से 25 से लेकर 33.3 प्रतिशत तक का अनुदान मिलता है. बकरी पालन के सफल व्यवसाय के लिए जरूरी है कि वे स्वस्थ और निरोगी रहें. बीमार होने की दशा में तुरंत इलाज कराना चाहिए. वैसे बरसात आने पर ही ज्यादातर बीमारी लगने की संभावना रहती है. ऐसे में पशुपालक बरसात के मौसम में पशुधन पर विशेष ध्यान देकर उन्हें स्वस्थ रख सकते हैं.

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