
Mahashivratri 2021: महाशिवरात्रि कब है जाने व्रत, पूजा विधि व शुभ मुहूर्त के बारे में
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Mahashivratri 2021: महाशिवरात्रि कब है जाने व्रत, पूजा विधि व शुभ मुहूर्त
हर वर्ष फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव को बहुत प्रिया महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है इस बार महाशिवरात्रि ज्यादा फरवरी 2021 को है महाशिवरात्रि का व्रत कब किया जाएगा महाशिवरात्रि की पूजा विधि का शुभ मुहूर्त क्या है पूरी जानकारी के लिए इस पोस्ट को शुरू से आखिर तक पढ़े.
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हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि के व्रत का बहुत महत्व है
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और यह व्रत लगभग पूरे भारत देश में किया जाता है आइए जानते हैं.
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वर्ष 2021 में महाशिवरात्रि का व्रत कब किया जाएगा और इस व्रत का क्या महत्व है.
Mahashivratri Date 2021 ( महाशिवरात्रि व्रत कब किया जाएगा )
इस बार महाशिवरात्रि का व्रत 11 मार्च 2021 को है.
महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त क्या है
- निशीथ काल पूजा मुहूर्त : 11 मार्च देर रात 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक
- अवधि-48 मिनट
- महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त : 12 मार्च सुबह 6 बजकर 36 मिनट 6 सेकंड से दोपहर 3 बजकर 4 मिनट 32 सेकंड तक।
- चतुर्दशी तिथि शुरू: 11 मार्च को दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से
- चतुर्दशी तिथि समाप्त: 12 मार्च दोपहर 3 बजकर 2 मिनट
महाशिवरात्रि की पूजा विधि
महाशिवरात्रि के दिन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर सबसे पहले चंदन का लेप करें व सभी उपायों के साथ भगवान शिव की पूजा शुरू करनी चाहिए और पंचामृत शिवलिंग को स्नान करवाना चाहिए. और भगवान शिव के मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप करना चाहिए. शिव पूजा के बाद गोबर के उपलों की अग्नि जलाकर तिल, चावल और घी की मिश्रित आहुति देनी चाहिए. इस तरह होम के बाद किसी भी एक साबुत फल की आहुति दें.
सामान्यतः लोग सूखे नारियल की आहुति देते हैं और अंत में ब्राह्मणों को खाना खिलाते हैं वह दीपदान करते हैं महाशिवरात्रि के दिन ब्राह्मणों को खाना खिलाना होगा दीपदान करना बहुत शुभ होता है.
महाशिवरात्रि की पूजा को लेकर अलग-अलग मान्यताएं आइए जानते हैं इनके बारे में भी
सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान करना चाहिए. चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी हैं
प्रथम प्रहर में- ‘ह्रीं ईशानाय नमः’
दूसरे प्रहर में- ‘ह्रीं अघोराय नमः’
तीसरे प्रहर में- ‘ह्रीं वामदेवाय नमः’
चौथे प्रहर में- ‘ह्रीं सद्योजाताय नमः’।।
मंत्र का जाप करना चाहिए. दूसरे, तीसरे और चौथे प्रहर में व्रती को पूजा, अर्घ्य, जप और कथा सुननी चाहिए, स्तोत्र पाठ करना चाहिए. साथ ही प्रातःकाल अर्घ्यजल के साथ क्षमा मांगनी चाहिए, लेकिन व्यक्तिगत रूप से मेरा विश्वास क्षमा मांगने में नहीं है क्योंकि क्षमा तो दूसरों से मांगी जाती है. मैंने तो खुद को शिव जी को अर्पित कर दिया है-
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः
विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेनिद्रियाणाम्।
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः
चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्।।
अर्थात् “मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक, सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूं, मैं सदैव समता में स्थित हूं, न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूं, आनंद हूं, शिव हूं, शिव हूं”..