सांभरलेक की होली कैसे मनाई जाती है, 1500 सालो से चली आ रही है परंपरा जानिए क्या है खास: सांभरलेक ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक कस्बा रहा है। यहां हजारों वर्षों पुरानी संस्कृति और परंपराओं को लोग आज भी जीवित रखे हुए हैं। फागुन मास में बड़ी संख्या में लोग जोश और उमंग के साथ इस होली के पर्व में भाग लेते हैं और यहां विभिन्न प्रकार के नाटक देर रात तक आयोजित किए जाते हैं।
यह मेला आस्था का प्रमुख माना जाता है। यह भक्ति का उल्लास है। यह यह मेला समाज में खुशी ओर उमंग का संचार करता है। यह मेला राजधानी की धार्मिक और पर्यटन नगरी सांभरलेक का है, जिसमें अपनी संस्कृति और परंपरा की झलक दिखाई देती है। पूरे फागुन मास में यह नगरी भगवान की भक्ति और संस्कृति के रंग में रंग जाती है। इस परंपरा को देखने हर साल देश-विदेश से सैलानी आते हैं।
सांभरलेक की होली कैसे मनाई जाती है, 1500 सालो से चली आ रही है परंपरा जानिए क्या है खास
राजस्थान अपनी संस्कृति और परम्पराओं के लिए दुनिया भर में मशहूर है। आज भी वर्षों पुरानी परंपराएं और संस्कृति को लोग संजोए हुये हैं। राजधानी से 70 किलोमीटर दूर पर्यटन और धार्मिक नगरी सांभरलेक में जहां फागुन मास में पूरा कस्बा होली के रंगों के साथ-साथ अपनी संस्कृति वर्षो से चली आ रही परंपराओं में डूब जाता है। आज भी यहां 1500 सालों से चली आ रही परंपरा को लोग निभा रहे हैं। हर साल फागुन माह से ही फाग का रंग बिखरना शुरू हो जाता है। यहां के लोग देर रात तक चंग मंजीरों और ढोल की थाप पर लावणिया गाते झूमते दिखाई देते हैं। वहीं, होली के पर्व पर चौहान वंश से चले आ रहे नन्दकेश्वर का विशाल मेला आयोजित किया जाता है। इसे देखने के लिए प्रवासी लोगों के साथ-साथ देसी भजन लोग भी यहां पहुंचते हैं और होली के रंग में सराबोर हो जाते हैं।
इस मेले का इतिहास क्या है जानिए
सांभरलेक में होली के अगले दिन धुलंडी पर भगवान नंदकेश्वर का चलता फिरता मेला लगता है। इस मेले के इतिहास को लेकर बताया जाता है कि चौहान वंश के राजा को गोगराज के समय से ही भगवान शिव की आराधना कर सांभरलेक में भगवान शिव और नंदी की सवारी निकालने की परंपरा चली आ रही है। हर वर्ष होली पर छोटे बाजार सूर्य मंदिर से पूजा-अर्चना के साथ सवारी रवाना होती है, जो गली-मोहल्लों के बाहर से गुजरती है, जहां लोग शिव नंदी की सवारी की पूजा-अर्चना करते हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। हजारों की संख्या में लोग फूल और गुलाल उड़ाते हुए चंग और ढोल की मधुर धुनों पर झूमते नाचते गाते चलते हैं।
फागुन माह से ही फाग का रंग बिखरना शुरू
सांभरलेक की होली अलग ही समां बांधती है। यहां के लोगों में फागुन माह से ही फाग का रंग बिखरना शुरू हो जाता है। जब मनोरंजन के साधन कम होते थे, उस जमाने में होली पर ऐतिहासिक और धार्मिक कथाओ पर आधारित नाटक तमाशे मनोरंजन का जरिया होते थे, जिससे यहां के लोग उल्लास और कला की अभिव्यक्ति करते थे। यह परम्परा आज भी होली पर जन जीवन में उल्लास को जन्म देती है। भले जमाना टीवी का हो या सोशल मीडिया का फिर यहां संस्कृति और परंपराओं बखूभी निभाकर अपना मनोरंजन करते हैं, जिसे देखने के लिए युवा पुरुष या महिला बच्चे सभी देर रात डटे रहते हैं।
लोगों में बहुत उत्साह और उमंग मिल रहा देखने को
सांभरलेक ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक कस्बा रहा है। यहां हजारों वर्षों पुरानी संस्कृति और परंपराओं को लोग आज भी जीवित रखे हुए हैं। फागुन मास में बड़ी संख्या में लोग जोश और उमंग के साथ इस होली के पर्व में भाग लेते हैं और यहां विभिन्न प्रकार के तमाशे और नाटक देर रात तक आयोजित किए जाते हैं। लोग देर रात तक चंग और मंजीरों की थाप पर लावणिया गाते झूमते नजर आते हैं। होली के पर्व चौहान वंश से चली आ रही नंदकेश्वर की सवारी को देखने प्रवासियों के साथ-साथ देसी विदेशी लोग भी यहां की होली को देखकर उत्साहित होते हैं। साथी इस बार ऐतिहासिक मेले को राजस्थान पर्यटन विभाग के कैलेंडर में शामिल किया गया है। इसके चलते लोगों में काफी उत्साह उमंग है कि अब यहां की संस्कृति और परंपरा देश विदेश के लोगों को भी देखने का मौका मिलेगा।
संस्कृति को बचाने के लिए इस मेले में लें हिस्सा
इस ऐतिहासिक और पौराणिक मेले में आज भी हजारों की संख्या में लोग अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए इस मेले में भाग लेते हैं। वही इस मेले में सरकारी महकमा भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और सुरक्षा के चाक-चौबंद व्यवस्था करते हैं ऐसे में ऐसे मेले के आयोजन से आज भी हमारी परंपरा और संस्कृति जिंदा है। साथ ही पर्यटन क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलेगा।
नोट: यहां पर दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओ और जानकारीयों पर आधारित है Search Duniya इसकी कोई पुष्टि नहीं करता है।
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