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सक्सेस स्टोरी

मदद की कहानी जो जिंदगी बदल देगी, Mortivational Story

मदद की कहानी जो जिंदगी बदल देगी, Mortivational Story

Mortivational Story In Hindi, Success Story In Hindi

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मदद की कहानी जो जिंदगी बदल देगी, Mortivational Story

Mortivational Story In Hindi – मैं एक दिन अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला. मैं रेलवे स्टेशन पँहुचा, पर देरी से पँहुचने के कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी. मेरे पास दोपहर की ट्रेन के अलावा कोई चारा नही था. मैंने सोचा कही नाश्ता कर लिया जाए.

मुझे बहुत जोर की भूख लगी थी. मैं होटल की ओर जा रहा था.

अचानक रास्ते में मेरी नजर फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी.

दोनों लगभग 10-12 साल के होंगे. बच्चों की हालत बहुत खराब थी.

कमजोरी के कारण अस्थि पिंजर साफ दिखाई दे रहे थे. वे भूखे लग रहे थे. छोटा बच्चा बड़े को खाने के बारे में कह रहा था और बड़ा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था. मैं अचानक रुक गया. दौड़ती भागती जिंदगी में पैर ठहर से गये.

जीवन को देख मेरा मन भर आया. सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाएँ. मैं उन्हें दस रु. देकर आगे बढ़ गया  तुरंत मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हूँ मैं. दस रु. का क्या मिलेगा ? चाय तक ढंग से न मिलेगी. स्वयं पर शर्म आयी फिर वापस लौटा. मैंने बच्चों से कहा – कुछ खाओगे ?

बच्चे थोड़े असमंजस में पड़ गए जी. मैंने कहा बेटा मैं नाश्ता करने जा रहा हूँ,

तुम भी कर लो वे दोनों भूख के कारण तैयार हो गए.

मेरे पीछे पीछे वे होटल में आ गए.

उनके कपड़े गंदे होने से होटल वाले ने डांट दिया और भगाने लगा.

मैंने कहा भाई साहब उन्हें जो खाना है वो उन्हें दो पैसे मैं दूँगा. होटल वाले ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा. उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ दिखाई दी.

बच्चों ने नाश्ता मिठाई व लस्सी माँगी

सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चों को लेकर दिया । बच्चे जब खाने लगे , उनके चेहरे की ख़ुशी कुछ निराली ही थी । मैंने भी एक अजीब आत्म संतोष महसूस किया । मैंने बच्चों को कहा बेटा ! अब जो मैंने तुम्हे पैसे दिए हैं उसमें एक रु. का शैम्पू ले कर हैण्ड पम्प के पास नहा लेना

सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चों को लेकर दिया.

बच्चे जब खाने लगे उनके चेहरे की ख़ुशी कुछ निराली ही थी.

मैंने भी एक अजीब आत्म संतोष महसूस किया.

मैंने बच्चों को कहा बेटा अब जो मैंने तुम्हे पैसे दिए हैं.

उसमें एक रु. का शैम्पू ले कर हैण्ड पम्प के पास नहा लेना.

और फिर दोपहर शाम का खाना पास के मन्दिर में चलने वाले लंगर में खा लेना. मैं नाश्ते के पैसे चुका कर फिर अपनी दौड़ती दिनचर्या की ओर बढ़ निकला.

वहाँ आसपास के लोग बड़े सम्मान के साथ देख रहे थे.

होटल वाले के शब्द आदर में परिवर्तित हो चुके थे. मैं स्टेशन की ओर निकला थोडा मन भारी लग रहा था.

मन थोडा उनके बारे में सोच कर दु:खी हो रहा था.

रास्ते में मंदिर आया । मैंने मंदिर की ओर देखा और कहा – हे भगवान ! आप कहाँ हो ? इन बच्चों की ये हालत ! ये भूखे हैं और आप कैसे चुप बैठ सकते हैं.

 

दूसरे ही क्षण मेरे मन में विचार आया , अभी तक जो उन्हें नाश्ता दे रहा था वो कौन था ? क्या तुम्हें लगता है तुमने वह सब अपनी सोच से किया ? मैं स्तब्ध हो गया ! मेरे सारे प्रश्न समाप्त हो गए

ऐसा लगा जैसे मैंने ईश्वर से बात की हो ! मुझे समझ आ चुका था हम निमित्त मात्र हैं । उसके कार्य कलाप वो ही जानता है, इसीलिए वो महान है.

 

भगवान हमें किसी की मदद करने तब ही भेजता है , जब वह हमें उस काम के लायक समझता है. यह उसी की प्रेरणा होती है. किसी मदद को मना करना वैसा ही है जैसे भगवान के काम को मना करना.

 

खुद में ईश्वर को देखना ध्यान है, दूसरों में ईश्वर को देखना प्रेम है, ईश्वर को सब में और सब में ईश्वर को देखना ज्ञान है..

 

 

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